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Agency | Jan 31, 2022 | 100 Steps of Success
परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है
सही है कि बिना काम के आदमी पागल हो सकता है या आत्महत्या कर सकता है किन्तु परिश्रम करते रहने पर न कोई पागल हो सकता है और न आत्महत्या कर सकता है। आदमी काम से नहीं, आराम से मर सकता है। काम के बिना जिन्दगी का कोई अर्थ नहीं है और परिश्रम के बिना किसी काम का कोई औचित्य नहीं है।
यह भी सही है कि यहां सफल और असफल दोनों ही तरह के व्यक्ति काम करना नहीं चाहते परन्तु विवशतावश करना पड़ता है किन्तु जो काम को अपनी आदत बना लेता है, वह कभी असफल नहीं हो सकता,जो काम न करने के बहाने ढूंढ़ लेता है, वो कभी सफल नहीं हो सकता। जो अपने काम को काम समझ कर निरन्तर संलग्न रहता है और श्रम से कभी समझौता नहीं करता, वही जिन्दगी में सब कुछ प्राप्त कर सकता है।
जिस प्रकार तराशे बिना पत्थर को हीरा नहीं बनाया जा सकता, उसी प्रकार संघर्ष के बिना भाग्य को नहीं चमकाया जा सकता। निरन्तर परिश्रम करके ही किसी सफलता को बरकरार रखा जा सकता है अर्थात् परिश्रम ही जीवन है।
यदि कहीं थोड़ी सी भी भूल-चूक रह जाती है तो पर्याप्त परिश्रम के उपरान्त भी अपेक्षित फल नहीं मिल सकता इसलिए पहले भूल-चूक सुधारें, फिर प्रयास करें। याद रखें, पसीने की बून्दों के बिना सफलता का फूल नहीं खिल सकता। व्यक्ति की संघर्ष क्षमता और श्रम साध्यता असीम, अतुलनीय एवं अनाम होती है। आज दुनिया जहां पहुंची है वह परिश्रम के माध्यम से ही पहंची है।
हर कार्य में परिश्रम करना पड़ता है। सोचने-विचारने में भी श्रम लगता है। श्रम चाहे शारीरिक हो, मानसिक हो या बोद्धिक, श्रम तो श्रम ही होता है। बिना परिश्रम किये तो आप पुस्तक भी नहीं पढ़ सकते । सफल हो जाने का यह मतलब कदापि नहीं है कि अब आपको श्रम की आवश्यकता ही नहीं रही है। कोई भी सफलता कभी अन्तिम नहीं होती और हर सफलता को अपने स्थायित्व के लिए लगातार श्रम की आवश्यकता होती है अर्थात् श्रम से पीछा छुड़ाने का अर्थ होगा जिन्दगी से पीछा छुड़ना।
परिश्रम एक आहुति है। कठोर परिश्रम एक चुनौती है। जीवन यज्ञ में परिश्रम की आहुति देते रहें, हर चुनौती को स्वीकारते चलें। फिर देखें, असंभव भी कैसे संभव हो जाता है। जितना परिश्रम आप साधारणतः कर सकते हैं, उसका दोगुना परिश्रम करके तो देखिए। जितना आप दूसरे से काम ले सकते हैं, उससे डेढ़ गुना काम लेकर तो देखिए, आपको कभी पीछे मुड़कर देखने की पुफरसत ही नहीं मिलेगी।
विरासत, लाॅटरी, धेखाध्ड़ी, छल-कपट या किसी भी शाॅर्टकट से आप रातों-रात करोड़पति तो हो सकते हैं किन्तु आकस्मिक ध्नन को सहेजने एवं ध्नन का सदुपयोग करने के लिए भी आपको बहुत कुछ श्रम करना ही पड़ेगा। याद रखें ध्नन जिस तेजी से आता है, उससे भी अधिक तेजी से चला भी जाता है।
किसी भी कार्य की सफलता में श्रम का हिस्सा अस्सी प्रतिशत तक होता है। योग-संयोग, भाग्य-सौभाग्य, दक्षता-क्षमता, योजनाबद्धता आदि का योगदान केवल बीस प्रतिशत तक ही हो सकता है। याद रखें, भाग्य भी उसी का साथ देता है, जो परिश्रम को अपना साथी बना लेता है। भाग्य से मिली सफलता भी परिश्रम के बिना विफलता में बदल सकती है। अर्थात् परिश्रम तो सफलता की प्रथम एवं अन्तिम शर्त है।
बीमारी किसी मंत्र से नहीं मिट सकती, संकल्प के साथ दवा तो खानी ही पड़ेगी। कामयाबी भी किसी मंत्र से नहीं मिल सकती, मेहनत की जेहमत तो उठानी ही पड़ेगी। मेहनत के बिना तो खुदा की रहमत भी कहां बरसती है। मेहनत के बिना तो सफलता भी सफलता को तरसती है।
दृष्टान्त
किसी उद्योगपति के इकलौता पुत्र था। पुत्र आरामतलब और खर्चीला था। इसलिए उसे कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई थी। मौज-मस्ती में ही उम्र निकलती जा रही थी। एक दिन उसने अपने पिता से आग्रह किया कि उसे भी फैक्ट्री का कुछ काम संभला दिया जावे। इस पर पिता ने कहा जिस दिन तुम अपनी मेहनत से एक रुपया भी कमा कर ले आओगे, उसी दिन काम संभला दूंगा। आलसी पुत्र ने अपने किसी मित्र से एक रुपया प्राप्त किया और पिता को लाकर दे दिया। व्यवसायी पिता ने सिक्के को सूंध और यह कहते हुए कचरे में फेंक दिया कि इसमें उसके पसीने की खुशबू नहीं थी। पुत्र चुपचाप वहां से चला गया। दूसरे दिन पुत्र ने अपनी मां से पांच रुपये का सिक्का लिया और अपने पिता के सामने रख दिया। पिता ने सिक्का सूंघा और यह कहते हुए कचरे में फेंक दिया कि इसमें भी तुम्हारे पसीने की खुशबू नहीं आ रही है। पुत्र वहां से चला गया किन्तु पेरशान हो उठा। उसने निश्चय किया कि सचमुच कमाकर ही लायेगा। एक दिन वह अपने शहर से जरा दूर चला गया। पास के कस्बे में दिन भर मजदूरी की। उसे पचास रुपये मजदूरी के एवज में मिले। शाम को थका-हारा लौटा और अपनी पहली कमाई में से एक रुपये का सिक्का अपने पिता के सामने रख दिया। पिता ने सिक्का सूंघा और यह कहते हुए कि इसमें भी उसके पसीने की खुशबू नहीं है, कचरे में फेंक दिया। इस पर पुत्र ने तुरन्त कचरे में से अपना सिक्का ढूंढ़ा और अपने माथे से लगाते हुए जेब में रख लिया। तब पिता ने उसे अपने पास बुलाया और कहा-मैं समझ गया, यह तुम्हारी खरे पसीने की कमाई हैं। तुम कल से फैक्ट्री आ सकते हो।
Fae Counsel 1 year ago
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